केवल आंदोलनों के ज़रिये क्या गुल खिलायेगी कांग्रेस

मुस्लिम बाबरी मस्जिद प्रकरण के लिए मानता है कांग्रेस को खलनायक

  • अमन

वाराणसी । सियासत में जब जाति समूहों का ट्रैंगल बनता है तब सरकार बनती है। कम से कम यूपी की सियासत तो यही कहानी बयां करती है। उत्तर प्रदेश की सियासत में जब मायावती ने कदम रखा तो केवल दलित वोटरों के बूते वो कुछ खास नहीं कर सकी। तब उन्होंने जाति समूहों का ट्रैंगल बनाया, भाईचारा कमेटियों का गठन किया।

मायावती ने मुस्लिम और ब्राहृाणों को एकजुट कर उनका 60 फीसदी वोट अपने पाले में कर बसपा की सरकार बना दी। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यादव वोटों को सहेजा, साथ में मुस्लिम और ब्राहमणों को अपने पाले में किया और यूपी की सियासत उनके कब्जे में हो गयी।

6 सीएम दिया फिर भी ब्राह्मण लीडरशीप नहीं . दलित-पिछड़े पहले ही हो चुके हैं कांग्रेस से दूर

मायावती और मुलायम ने जिन वोटरों को अपने पाले में किया था वो किसी और का नहीं बल्कि कांग्रेस का ही परम्परागत वोट था। आज कांग्रेस अपने परम्परागत वोटरों को नहीं सहेज पा रही। नतीजतन यूपी की सियासत में जिस कांग्रेस ने 6 ब्राहमण मुख्यमंत्री दिये। जिसका 80 के दशक में जलवा होता था वो कांग्रेस तीन दशक तक यूपी में हाशिए पर पहुंच गयी।

राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ मानते हैं कि परम्परागत वोटरों को सहेजने के लिए कांग्रेस ने कोई ठोस काम नहीं किया। एक के बाद एक पुराने नेता पार्टी छोड़कर जाते गये या फिर उपेक्षित होकर चुपचाप घर बैठ गये। धीरे-धीरे ब्राहमण लीडरशीप भी खत्म हो गयी इसका खामियाज़ा चुनाव दर-चुनाव हार के तौर पर भुगतना पड़ा। बेस वोट दूसरे दलों में चले जाने से 3 दशक तक कांगे्रस सत्ता के गलियारे से दूर रही।

पार्टी का संगठन महज़ नाम का ही रह गया। जो पुराने नेता थे वो अपने को उपेक्षित देखकर खुद दूसरे दलो में चले गये या फिर चुपचाप बैठ गये। आज़ादी के पहले से कमलापति त्रिपाठी कुनबे का कांग्रेस में न सिर्फ दबदबा था बल्कि यूपी में कांग्रेस मतलब ही कमलपति त्रिपाठी कुनबा माना जाता था मगर हाल में ही इस कुनबे के चश्मो-चिरागं ललितेश पति त्रिपाठी ने अपनी उपेक्षा से परेशान होकर दल को छोड़ दिया। इससे कांग्रेस को बड़ा झटका लगा।

दरअसल सूबे में 80 के दशक तक अधिकांश समय कांग्रेस की ही सरकारें रही है। कांग्रेस ने 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए। 25 जून 1988 को नारायण दत्त तिवारी तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने वो 5 दिसम्बर 1989 तक इस पद पर थे। तिवारी कांग्रेस के यूपी में आखिरी सीएम थे। उसके बाद कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बना। यूपी में वर्तमान में ब्राह्मणों की अनुमानित संख्या तकरीबन 8-10 फीसद है।

सूत्रों की मानें तो पार्टी ने ब्राह्मण नेता को सीएम के रूप में पेश करने की अंदरखाने में तैयारी चल रही है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि ब्राह्मण हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है। फिर क्या वजह है कि दूसरे दलों में घुटन महसूस करने वाला ब्राह्मण कांग्रेस से नहीं जुड़ पा रहे है? यह एक अहम सवाल है जिसका जवाब किसी के पास फिलहाल नहीं है। अब देखना यह है कि प्रियंका गांधी मिशन 2022 में क्या गुल खिला पाती हैं।

नेताओं का कहना है कि ब्राह्मणों के मुद्दे हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल है।फिर क्या वजह है कि दूसरे दलों में घुटन महसूस करने वाला ब्राह्मण कांग्रेस से नहीं जुड़ पा रहा है? यह एक अहम सवाल है जिसका जवाब किसी के पास फिलहाल नहीं है। औरंगाबाद हाउस की उपेक्षा पिछले दिनों प्रियंका बनारस में थी। वो औरंगाबाद हाउस नहीं गयी, और न ही वहां से कोई उनकी रैली में आया। देश की आज़ादी के बाद से पहली बार ऐसा हुआ। सियासदां मानते हैं कि अगर प्रियंका वहां चली जाती तो बात बन जाती मगर वो नहीं गयीं।

टीएमसी के हुए ललितेश

कमलापति त्रिपाठी के चश्मो चिराग ललितेशपति ने आखिरकार टीएमसी ज्वाइन कर लिया। वो पिता राजेशपति त्रिपाठी के साथ ममता बैनर्जी से मिले और टीएमसी की सदस्यता ले ली। इसी के साथ 10 जनपथ के बाद देश में कांग्रेस का दूसरा पता औरंगाबाद हाउस भी कांग्रेस की झोली में नहीं रहा। कांग्रेस का बेस वोट दलित,पिछड़ा, ब्राह्मण सपा, बसपा और कांग्रेस में शिफ्ट हो गया।

मुसलिम की नज़र में खलनायक

बाबरी मसजिद का ताला खोलवाने, मूर्ति रखवाने से लेकर शिलान्यास तक कांग्रेस के समय में ही हुआ। इसके चलते मुसलिम बाबरी मसजिद प्रकरण के लिए कांग्रेस को ही खलनायक मानती है। यही वजह है कि कांग्रेस का जनाधार अर्श से फर्श पर पहुँच गया। प्रदेश ही नहीं पूरें देश में संगठन बिखर गया है। कांग्रेस में कलह बढ़ता जा रहा है। उत्तर प्रदेश ही नहीं मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और अब पंजाब में भी कांग्रेस अपनों से ही संघर्ष करती नज़र आ रही है।

अकेली प्रियंका पर कितना भरोसा

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के यूपी का प्रभारी बनाये जाने के बाद पार्टी किसी न किसी मुद्दे को लेकर लगातार चर्चा में ज़रूर बनी हुई है। खासकर कानून व्यवस्था, उत्पीड़न और किसानों के मुद्दे पर तो वो लगातार आंदोलन कर रही है मगर राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रियंका जो कर रही है उससे कांग्रेस चर्चा में आयी है मगर जब तक बेस वोट को सहेजने के लिए कांग्रेस में कोई ठोस प्रयास नहीं होगा तब तक कांग्रेस कम से कम यूपी में कोई कमाल नहीं कर पायेगी। आखिर अकेली प्रियंका पर कितना भरोसा किया जा सकता है।

क्या कहते हैं राजनीतिक

राजनीतिक विशेषज्ञ डा. मो. आरिफ कहते हैं कि प्रियंका ने हाल के वर्षो में कांग्रेस में नयी जान फूंकी है इससे इंकार नहीं किया जा सकता। हां ज़रूरत है कि मुहल्ले-मुहल्ले टीम बनाकर बेस वोट वापस पाने के लिए युद्धस्तर पर कांग्रेस को काम करना होगा। ठीक वैसे जिस तरह से आम आदमी पार्टी के लोग वोटर्स के बीच जाकर काम कर रहे हैं। वो कहते हैं कि कभी कभी बड़े को छोटे से भी नसीहत लेनी पड़ती है। आप से यहां अगर नसीहत ली जाये तो कोई बुरा नहीं है। डा. आरिफ कहते हैं कि भाजपा का अगर कोई ठोस विकल्प है तो वो आज भी कांग्रेस ही है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *