1942 की क्रांति में बिल्थरारोड के सात वीर सपूतों की शहादत का गवाह है चरौवां
शहीदों की वीरगाथा का प्रमाण है शहीद स्मारक

चरौवां (बिल्थरारोड) बलिदान दिवस पर विशेष….
बलियाः सन 1942 के स्वतंत्रता आंदोलन में जिला मुख्यालय पर क्रांतिकारियों ने फिरंगियों के पांव उखाड़ दिए थे, उन्हीं दिनों बेल्थरारोड की धरती के वीर सपूतों ने भी सर पर कफन बांध अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया। जिससे बौखलाएं अंग्रेजों ने यहां क्रूरता का तांडव दिखाया। इन दिनों अंग्रेजों के क्रूरता का डट कर सामना करने में शहीद हुए बेल्थरारोड में कुल सात अमर शहीदों की यादें आज भी यहां ताजा है। खंडहरों में तब्दील चरौवां गांव में इनकी स्मृतियां आज भी इनकी बलिदानी दास्तां को बयां करती है। यहां के शहीदी स्मारक व शहीद स्पूत समेत भव्य शहीदी द्वार के समक्ष हर कोई गर्व करता है।
शहीदों की वीरगाथा का प्रमाण है शहीद स्मारक
अंग्रेजों के आर्थिक, यातायात व संचारस्त्रोत पर क्रांतिकारियों द्वारा यहीं से सीधा हमला करने के कारण 1942 में अंग्रेजों ने इस गांव को ही मिटा देने का प्लान बनाया और लगातार तीन दिन तक पूरे इलाके को घेर जमकर गोलियां बरसाई गई। इसी दिन बिल्थरारोड में भी कई स्थानों पर अंग्रेजों ने गोलीबारी की। जिसका सामना करने में वीरांगना मकतूलिया मालीन, अमर शहीद चंद्रदीप सिंह निवासी ग्राम आरीपुर सरयां, अतवारु राजभर निवासी ग्राम टंगुनिया, शिवशंकर सिंह, मंगला सिंह, ग्राम चरौंवा, खरबियार ग्राम चरौवां में छ शहीद हुए। जबकि सूर्यनारायण मिश्र निवासी ग्राम मिश्रवली बिल्थरारोड शहीद हो गए। बावजूद वीर क्रांतिकारियों ने बिल्थरारोड में रेलवे स्टेशन और मालगोदाम को फूंक डाला और अंगे्रजों के हथियार से भरे ट्रेन को डम्बर बाबा परती के पास लूट लिया गया। क्रांतिकारियों के हमले से अंग्रेजी सेना के अगुवाई कर रहे कैप्टन समेत कई फिरंगी अधिकारियों गंभीर रुप से जख्मी हुए और अनेक अंग्रेजी सिपाही मारे गए।
भारत छोड़ों आंदोलनः
4 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौर के बीच बिल्थरारोड में अंग्रेजों ने निहत्थे क्रांतिकारियों पर गोलियां बरसाई। जिससे चंद्रदीप सिंह ग्राम आरीपुरसरयां व अतवारु राजभर ग्राम टंगुनिया शहीद हो गए किंतु अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब भी मिला। अगले ही दिन 15 अगस्त को कैप्टन मूर के नेतृत्व में अंग्रेजों ने मशीनगन के साथ पूरे गांव को घेर लिया और घंटों जमकर गोलियां बरसाई। जिससे श्रीखरवियार एवं शिवशंकर सिंह शहीद हो गए। इस दौरान अंग्रेजों ने गांव में जमकर लूटपाट भी किया। गांव में पूरे दिन चले अंग्रेजों के आतंक से तंग श्रीमती मकतुलिया मालीन फिरंगी सिपाहियों के नजर से बचकर कैप्टन मूर के सर पर मिट्टी की एक विशाल हांडी दे मारी। जिससे लहूलुहान कैप्टन को देख अंग्रेज तिलमिला गए और मकतुलिया को गोलियों से छलनी कर दिया। ग्रामीणों के हिंसक विरोध से बौखलाएं अंग्रेजों ने मकतुलिया का शव भी साथ लेते गए। इस दर्द से अभी लोग उबर भी नहीं पाए थे कि 17 अगस्त को फिर अंग्रेजी फौज ने गांव में हमला बोला। गांव में गोलीबारी की गई। कई घरों को फूंक दिया और घरों में लूटपाट की। इस दौरान अग्रंेजों की गोली से मंगला सिंह शहीद हो गए। आज भी यहां की लाल मिट्टी शहीद वीरों के बलिदानी गाथा को याद दिलाती है और लोगों में देश प्रेम व राष्ट्रभक्ति का जज्बां जगाती है। देश की आजादी के बाद अप्रैल 1944 में उ.प्र. कांग्रेस कमेटी की तरफ से स्वयं स्व. फिरोज गांधी भी यहां अपने दल-बल के साथ पहुंचे और वीरों को श्रद्धांजलि देने के बाद यहां की बलिदानी मिट्टी को साथ ले गए।